Wazifa-e-dard (वज़ीफ़ा-ए-दर्द)

Death..one of the universal truth of this momentary life, has always been inevitable and the only certain thing ever. Nothing goes past it or survives, except the memories garnered during the life tenure.

आंखें है तर…दिल है भरा…

कोई क्या कह रहा है…कानो में है मोम रखा.. .

अल्फ़ाजों से कहां हो पाए ब्यान…ये दर्द-ए-इंतेहान

लोगो का खत्म हुआ…अब आवन जवान

सूना हुआ मकान.. और ये आंगन…

अकेले में बैठे सोचते है… क्या होगी तर्ज़-ए-जहाँ..

सुख-दुख भूले जिसकी फ़िक्र में…

चाहत थी…ज़िस्त लंबी करेगा

जिसे पाला पोसा बड़ा किया..

छोड़ गया वही…तन्हा…उसे क्या फर्क पड़ेगा

अब इस बची हुई उम्र का क्या करे…एजाज़

जीना है मुश्किल, मरना है मुश्किल

ये फ़ितूर अब हर लम्हा करेगी असाब-ज़दह…

किस किस को दे इलज़ाम, रही जालिम सारी कायनात…

ये सबब थी बेवजह…है हमें इल्हाम…

सुख गए हैं आंसू, पर सुकून है नहीं…

आंखों को रहेगा इंतजार, आ न जाए वो कहीं…

पता हो.. कहीं है…चलता है

पता हो.. नहीं है…कहाँ चलता है

[ तर्ज़ – तरीक़ा, ज़िस्त- ज़िंदगी, असाब-ज़दह – परेशान, इल्हाम – एहसास ]